Wednesday 22 June 2022

धन्यवाद ।

 

मेरे पिताजी की आदत भी अज़ीब थी।

खाना खाने बैठते तो एक निवाला तोड़ कर थाली के चारों ओर घूमाते और फिर उसे किनारे रख कर थाली को प्रणाम करते और खाना खाना शुरू करते।

मैं उन्हें ऐसा करते हुए देखता और सोचता कि पिताजी ऐसा क्यों करते हैं?


बहुत हिम्मत करके एक दिन मैंने उनसे पूछ लिया कि पिताजी, आप रोज एक निवाला अलग करके, खाने की थाली को प्रणाम क्यों करते हैं?


पिताजी मेरी ओर देख कर मुस्कुराने लगे। 


फिर उन्होंने कहा कि मैं खाने से पहले ईश्वर को धन्यवाद कहता हूं। 

धन्यवाद इस बात के लिए कि उन्हें खाना खाने को मिला। 

धन्यवाद इस बात के लिए भी कि वो खाना खाने के योग्य हैं। 

धन्यवाद इस बात के लिए भी कि खाना खाने योग्य है।


मैं बहुत छोटा था, समझ नहीं पा रहा था कि खाना तो मां ने बनाया है, फिर इसमें ईश्वर कहां से आ गए?


शायद पिताजी ने मेरी आंखों में सवाल को पढ़ लिया था।


उन्होंने मुझसे बहुत धीरे से कहा कि खाना बहुत अच्छा बना है, इसलिए अभी तुम्हारी मां यहां आएगी तो मैं उसे भी धन्यवाद कहूंगा।


मुझे कायदे से ये बात याद नहीं रहनी चाहिए थी। पर मुझे याद रह गई।


कारण?


पिताजी ने जितना कुछ समझाया था, उसका निचोड़ इतना ही था कि हमें अपने भीतर धन्यवाद कहने का भाव विकसित करना चाहिएहमें धन्यवाद कहना सीखना चाहिए


हम स्वस्थ हैं। हमें दोनों वक्त खाना मिलता है। हमारे सिर पर छत है। हमारे पास बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जो बहुत से लोगों के पास नहीं। हमें इसके लिए धन्यवाद कहना चाहिए। हमें धन्यवाद इसलिए कहना चाहिए क्योंकि इसी संसार में बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास वो नहीं, जो हमारे पास है। इस संसार में बहुत से लोगों के पास ऐसी चीजें हैं, जो हमारे पास नहीं। इसके लिए मन में मलाल रखने की जगह जो है, उसके लिए धन्यवाद कहना सीखना अधिक महत्वपूर्ण है। 


मैंने कभी पिताजी को उदास नहीं देखा। 


मैंने पिताजी से एक बार पूछा था कि क्या आप कभी दुखी नहीं होते, तो पिताजी ने मुझे समझाया था कि ज़िंदगी बहुत आसान हो जाती है, अगर हम घटने वाली घटनाओं को ईश्वरीय विधान मान लें तो। वो मुझे समझाते थे कि बहुत छोटी-छोटी बातों में भी तुम अच्छाई ढूंढ सकते हो। एक बार अच्छाई ढूंढने की आदत पड़ जाती है, तो ज़िंदगी आसान हो जाती है


(साभार -  अनजान, व्हाट्सएप से प्राप्त)

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