Wednesday 27 May 2020

प्रकृति के तीन कड़वे नियम, जो सत्य हैं !!

1. प्रकृति का पहला नियम : यदि खेत में बीज न डालें जाएँ, तो कुदरत उसे घास-फूस से भर देती है !! ठीक उसी तरह यदि दिमाग में सकारात्मक विचार न डाले जाएँ, तो नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेते हैं !!
 
2. प्रकृति का दूसरा नियम : जिसके पास जो होता है, वह वही बांटता है !!
सुखी सुख बांटता है !!
दुःखी दुःख बांटता है !!
ज्ञानी ज्ञान बांटता है !!
• भ्रमित भ्रम बांटता है !!
भयभीत भय बांटता हैं !!

3. प्रकृति का तिसरा नियम : आपको जीवन में जो भी मिले, उसे पचाना सीखें क्योंकि -
• भोजन न पचने पर, रोग बढते हैं !!
पैसा न पचने पर, दिखावा बढता है !!
• बात न पचने पर, चुगली की आदत बढती है !!
• प्रशंसा न पचने पर, अंहकार  बढता है !!
• निंदा न पचने पर, दुश्मनी बढती है !!
• राज न पचने पर, खतरा बढता है !!
दुःख न पचने पर, निराशा बढती है !!
• सुख न पचने पर, पाप बढता है !! 

बात कड़वी बहुत है, पर! सत्य है !!! 

Friday 8 May 2020

आज का दु:ख कल का सौभाग्य है !

महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी, तब वो बड़े दुःखी रहते थे पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था !

मजे की बात ये कि इस हौसले की वजह किसी ऋषि-मुनि या देवता का वरदान नहीं बल्कि श्रवण के पिता का श्राप था !

दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था ! (कालिदासजी ने रघुवंशम में इसका वर्णन किया है )

श्रवण के पिता ने ये श्राप दिया था कि ''जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ, वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा " समझिये कैसे आज का दु:ख कल का सौभाग्य बनता है !

दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र प्राप्त होगा (तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा )

यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया !

ऐसी ही एक घटना सुग्रीव के साथ भी हुई !

सुग्रीव जब सीताजी की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग - अलग दिशाओं में भेज रहे थे तो उसके साथ-साथ उन्हें ये भी बता रहे थे कि किस दिशा में तुम्हें क्या मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिये !

प्रभु श्रीराम सुग्रीव का ये भौगौलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे !

उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि सुग्रीव तुमको ये सब कैसे पता ?

तो सुग्रीव ने उनसे कहा कि  वह बाली के भय से जब मारे-मारे फिर रहे था, तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली. और इस चक्कर में उन्होंने पूरी पृथ्वी छान मारी और इसी दौरान उन्हें सारे भूगोल का ज्ञान हो गया !

सोचिये, अगर सुग्रीव पर ये संकट न आया होता तो उन्हें भूगोल का ज्ञान नहीं होता और माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो  जाता !

इसीलिए किसी ने बड़ा सुंदर कहा है :-
"अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करे, वही पुरुषार्थी है !

ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है तो हर एक कांटा भी वरदान ही समझो !

मतलब अगर आज मिले सुख से आप प्रसन्न हो तो कभी अगर कोई दु:ख, विपदा, अड़चन आ जाये तो घबराना नहीं! क्या पता वो अगले किसी सुख की तैयारी हो !

सदैव सकारात्मक रहें !

🙏 जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम। 🙏


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